Gita Summarized

In this chapter, Arjun reiterates to Shree Krishna that he is unable to cope with his current situation, where he has to kill his elders and teachers. He refuses to take part in such a battle and requests Shree Krishna to be his spiritual teacher and guide him on the proper path of action. Then the Supreme Lord starts imparting divine knowledge to Arjun. He begins with the immortal-nature of the soul, which is eternal and imperishable. Death only destroys the physical body, but the soul continues its journey.

इस अध्याय में अर्जुन अपने सम्मुख उत्पन्न स्थिति का सामना करने में स्पष्ट रूप से अपनी असमर्थता को दोहराता है और युद्ध करने के अपने कर्तव्य का पालन करने से मना कर देता है। तत्पश्चात वह औपचारिक रूप से श्रीकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाने और जिस स्थिति में वह स्वयं को पाता है, उसका सामना करने के लिए उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की प्रार्थना करता है। परम प्रभु उससे कहते हैं कि आत्मा, जो शरीर के नष्ट होने पर भी नहीं मरती, के अमरत्व की शिक्षा देकर दिव्य ज्ञान प्रदान करते हैं। आत्मा एक जन्म से दूसरे जन्म में उसी प्रकार से शरीर परिवर्तित करती है जिस प्रकार से मनुष्य पुराने वस्त्र त्याग कर नये वस्त्र धारण करता है। इसके पश्चात श्रीकृष्ण सामाजिक दायित्त्वों के विषय की ओर आगे बढ़ते हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Add a review

Your email address will not be published. Required fields are marked *