In this chapter, Shree Krishna compares karm sanyās yog (the path of renunciation of actions) with karm yog (the path of work in devotion). He says: we can choose either of the two paths, as both lead to the same destination. However, he explains that the renunciation of actions is rather challenging and can only be performed flawlessly by those whose minds are adequately pure. Purification of the mind can be achieved only by working in devotion. Therefore, karm yog is a more appropriate path for the majority of humankind.
इस अध्याय में कर्म संन्यास के मार्ग की तुलना कर्मयोग के मार्ग के साथ की गयी है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि दोनों मार्ग एक ही लक्ष्य की ओर ले जाते हैं और हम इनमें से किसी एक का चयन कर सकते हैं। लेकिन कर्म का त्याग तब तक पूर्णरूप से नहीं किया जा सकता। जब तक मन पूर्णतः शुद्ध न हो जाए और मन की शुद्धि भक्ति के साथ कर्म करने से प्राप्त होती है। इसलिए कर्मयोग बहुसंख्यक लोगों के लिए उपयुक्त विकल्प है।